विस्तृत परियोजना रिपोर्ट-ब्रह्मपुत्र
सारांश
वानिकी कार्यान्वयन के माध्यम से ब्रह्मपुत्र नदी के संरक्षण हेतु विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार करना
पृथ्वी पर नदियाँ, भूपृष्ठ जल का प्रमुख स्रोत हैं। वे जल और पोषक तत्वों को अनुप्रवाह क्षेत्रों की ओर ले जाती हैं और भूपृष्ठ जल हेतु जल निकास मार्गों के रूप में जल-चक्र में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। यह पृथ्वी के कई जीवों जैसे पौधों, जानवरों, कीट-पंतगों, पक्षियों आदि के लिए आवास और भोजन तथा कृषि हेतु उपजाऊ या उर्वर घाटियाँ और मैदान प्रदान करती हैं। यह जल विद्युत उत्पादन का एक महत्वपूर्ण स्रोत भी हैं। गंगा, ब्रह्मपुत्र और नर्मदा आदि जैसी नदियाँ, पवित्र मानी जाती हैं और इसलिए विभिन्न श्रद्धालु द्वारा उनकी आराधना की जाती है।
नदी प्रणालियों के जल-प्रवाह क्षेत्रों को, तेजी से बढ़ती जनसंख्या, संबद्ध विकासात्मक गतिविधियाँ, बाढ़कृत मैदान (कछार) का अतिक्रमण, नदियों के आर-पार क्षेत्र पर बैराजों/बाँधों का निर्माण, रेत और पत्थर खनन, औद्योगिक और गैर-औद्योगिक उपयोगों हेतु जल-निकासन, सड़क निर्माण के दौरान निकाली गई मिट्टी की अवैज्ञानिक डंपिंग, जलविद्युत विकास, औद्योगिक विकास, उद्योगों द्वारा नदी प्रणालियों में बहिःस्राव करने सहित घरेलू सीवेज और वन जलग्रहण क्षेत्र का निम्नीकरण आदि ने प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया है और नदी प्रणालियों के प्राकृतिक स्वास्थ्य और इसके जल की गुणवत्ता को ह्रासित किया है जिसके नदी के सेल्फ-क्लींजिंग क्षमता कम हो गई है। प्रायः यह देखा गया है कि भूस्खलन के द्वारा नदी प्रणालियों में तलछट जमाव (sediment flux) में वृद्धि होती है, जिसके लिए प्राकृतिक प्रक्रियाओं के बजाय मानवोदभवी गतिविधियाँ ज्यादा जिम्मेदार हैं।
पिछले अध्ययनों की समीक्षा से पता चला है कि अधिकांश अध्ययन केवल अलग-अलग हिस्सों में किए गए हैं और वानिकी कार्यों के माध्यम से पूरे नदी बेसिन स्तर पर पानी की गुणवत्ता और मात्रा और नदी के संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र में` सुधार के लिए विशिष्ट कार्य योजनाओं पर समग्र अध्ययन की अभी भी कमी है। जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय, भारत सरकार के नमामि गंगे कार्यक्रम के अंतर्गत वानिकी कार्यों के माध्यम से गंगा के लिए पुरुद्धार के लिए एक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद के वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून द्वारा वर्ष 2016 में तैयार की गयी और राष्ट्रीय स्तर एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसकी सराहना की गई। इसलिए, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार ने भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद, देहरादून को वानिकी कार्यों के माध्यम से देश के प्रमुख नदियों के पुनरुद्धार के लिए विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार करने का निर्देश दिया। भा.वा.अ.शि.प. ने अपने क्षेत्रीय संस्थानों के सहयोग से 13 नदियों (ब्यास, चिनाब, झेलम, रावी, सतलज, यमुना, ब्रह्मपुत्र, महानदी, नर्मदा, कृष्णा, गोदावरी, कावेरी, लूणी जो कि 9 नदी घाटियों से संबंधित है) का समग्र दृष्टि प्रक्रिया द्वारा वानिकी कार्यों के माध्यम से संरक्षण हेतु विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करने के लिए चयन किया है।
तद्नुसार, चूंकि वर्षा वन अनुसंधान संस्थान, जोरहाट; भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद के अंतर्गत एक प्रमुख संस्थान है, अतः परिषद ने व.व.अ.सं. को ब्रह्मपुत्र नदी के संरक्षण हेतु वानिकी कार्यान्वयन के माध्यम से विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (DPR) तैयार करने के लिए निर्देशित किया।
देश की प्रमुख नदी प्रणालियों का वानिकी कार्यों के माध्यम से संरक्षण करना विस्तृत परियोजना रिपोर्ट का व्यापक उद्देश्य है। जबकि विशेष उद्देश्य निम्नलिखित हैं:
- नदी बेसिन की वर्तमान स्थिति, अतीत में किए गए नदी प्रबंधन और उससे सीखे गए सबक की समीक्षा और मूल्यांकन ।
- हितधारकों की पहचान कर आम सहमति द्वारा विस्तृत रणनीतियों एवं विकास का खांका तैयार करना।
- राज्य द्वारा चलाए जा रहे वानिकी गतिविधियों द्वारा नदी प्रबंधन कार्यक्रम/कार्यक्रमों का मूल्यांकन।
- वन जलग्रहण क्षेत्र के उत्थान, सुधार और पुनःस्थापना हेतु क्षमताओं और संभावनाओं का आंकलन।
- नदी तट के वनों की स्थिति और जैविक फिल्टर की क्षमता का मूल्यांकन।
- आय सृजन से संबंधित गतिविधियों को संभावना को तलाशना ।
- औषधीय पौधों की खेती की क्षमता और संरक्षण क्षेत्रों में पुनःस्थापना तथा उपयुक्त प्रजातियों और उपयुक्त स्थलों की पहचान ।
- भविष्य के अनुसंधान और मॉनिटरिंग विकसित करने हेतु अनुसंधान और मॉनिटरिंग के मापदंडों की पहचान करना।
- परियोजना कार्यान्वयन के लिए रणनीति तैयार करना, दृष्टिकोण विकसित करना और गतिविधियों की योजना बनाना।
देश की प्रमुख नदी प्रणालियों की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करने हेतु वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून (2016) द्वारा वानिकी के कार्यान्वयन के माध्यम से गंगा के लिए विस्तृत परियोजना रिपोर्ट में उपयोग की गई तार्किक रूपरेखा दृष्टिकोण (लॉजिकल फ्रेमवर्क अप्रोच), जो एक बहुस्तरीय और बहु हितधारक की परामर्श प्रक्रिया है, का उपयोग किया गया। मौजूदा वैज्ञानिक ज्ञान, पिछले अनुभवों और भा.वा.अ.शि.प. और अन्य संस्थानों में उपलब्ध विविध विशेषज्ञता का उपयोग संपूर्ण परामर्श प्रक्रिया के माध्यम से डीपीआर के ढांचे, रणनीतियों और गतिविधियों के विकास के लिए किया जाएगा।
इस संबंध में, व.व.अ.सं., जोरहाट में दिनांक 18 जून 2019 को डीपीआर तैयार करने से संबंधित विभिन्न विषयों पर चर्चा करने और सही दिशा में पहल करने के लिए राज्य वन विभाग (असम, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मेघालय, मणिपुर, सिक्किम और पश्चिम बंगाल), ब्रह्मपुत्र बोर्ड, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-गुवाहाटी, डिब्रूगढ़ विश्वविद्यालय, गुवाहाटी विश्वविद्यालय, तेजपुर विश्वविद्यालय, असम कृषि विश्वविद्यालय, पूर्वोत्तर अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र पूर्वोत्तर क्षेत्रीय जल एवं भूमि प्रबंधन संस्थान, सीएसआईआर-पूर्वोत्तर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान, कम्युनिटी कंट्रोल्ड फॉरेस्ट एडमिनिस्ट्रेटर, गैर-सरकारी संस्थाएं (आर्यनायक, पॉलीगॉन फाउंडेशन-एनई), केंद्रीय जल आयोग, राष्ट्रीय मृदा सर्वेक्षण और भूमि उपयोग योजना, असम के बाढ़ और नदी कटाव प्रबंधन एजेंसी आदि के प्रतिनिधियों सहित सभी संबंधित संगठन को आमंत्रित करते हुए एक प्रारंभ बैठक का आयोजन किया गया।
तत्पश्चात्, राज्य वन विभाग, शिक्षा/अनुसंधान संस्थानों, अन्य विभागों और गैर सरकारी संगठनों के प्रतिनिधियों सहित सभी संबंधित संस्थानों को आमंत्रित कर राज्य स्तरीय परामर्श बैठक क्रमशः दिनांक 27 जून 2019, 19 जुलाई 2019 और 6 अगस्त, 2019 को सिक्किम, मेघालय और पश्चिम बंगाल में आयोजित की गई। इसी क्रम में, क्षेत्र-विशिष्ट रणनीतियों को विकसित करने के उद्देश्य से दिनांक 27 अगस्त, 2019 को नागालैंड के सभी संबंधित हितधारकों को आमंत्रित कर एक राज्य स्तरीय परामर्श बैठक आयोजित की गई।
ब्रह्मपुत्र नदी के संरक्षण एवं समग्र प्रबंधन में वानिकी कार्यान्वयन पर समग्र प्रबंधन पहल के परिणामस्वरूप विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) के रूप में एक व्यापक दस्तावेज तैयार किया जाएगा। इस दस्तावेज में नदियों का विवरण, हितधारकों, प्रासंगिक मुद्दों के निवारण हेतु तंत्र, विभिन्न गतिविधियों के कार्यान्वयन हेतु कुल लागत, अनुसूची तथा इसका मॉनिटरिंग प्रोटोकॉल शामिल होगा। इसके बाद के चरण में, कोई भी एजेंसी जोकि वानिकी कार्यों का क्रियान्वयन करती हो (अर्थात् - वन विभाग, ब्रह्मपुत्र बोर्ड, आदि) डीपीआर या इसके कुछ हिस्सों का उपयोग कर किसी भी निधियन अभिकरण से निधि ले सकती है और डीपीआर को कार्यान्वित कर सकती है।